इस अधिनियम के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, राज्य सूचना आयोग का यह कर्तव्य होगा कि वह निम्नलिखित किसी ऐसे व्यक्ति से शिकायत प्राप्त करे और उसकी जॉच करे,-
जो राज्य लोक सूचना अधिकारी को इस कारण से अनुरोध प्रस्तुत करने में असमर्थ रहा है कि इस अधिनियम के अधीन ऐसे अधिकारी की नियुक्ति नहीं की गई है या यथास्थिति राज्य सहायक लोक सूचना अधिकारी ने इस अधिनियम के अधीन सूचना या अपील के लिए धारा 19 की उपधारा (1) में विनिर्दिष्ट आवेदन को राज्य लोक सूचना अधिकारी अथवा प्रथम अपीलीय अधिकारी या द्वितीय अपील राज्य सूचना आयोग को भेजने के लिए स्वीकार करने से इन्कार कर दिया गया है;
जिसे इस अधिनियम के अधीन अनुरोध की गई कोई जानकारी तक पहुँच के लिए इन्कार कर दिया गया है;
जिसे इस अधिनियम के अधीन विनिदिष्ट समय-सीमा के भीतर सूचना के लिए या सूचना तक पहुँच के लिए अनुरोध का उत्तर नहीं दिया गया है;
जिससे ऐसी फीस की रकम का संदाय करने की उपेक्षा की गई है, जो वह अनुचित समझता है;
जो यह विश्वास करता है कि उसे इस अधिनियम के अधीन अपूर्ण, भ्रम में डालने वाली या मिथ्या सूचना दी गई है; और
इस अधिनियम के अधीन अभिलेखों के लिए अनुरोध करने या उन तक पहुँच प्राप्त करने से सम्बन्धित किसी अन्य विषय के सम्बन्ध में।
जहॉ राज्य सूचना आयोग का यह समाधान हो जाता है कि उस विषय में जॉंच के लिए युक्तियुक्त आधार है, वहॉ वह उसके सम्बन्ध में जॉच आरम्भ कर सकेगा।
आयोग को, इस धारा-18 के अधीन किसी मामले में जॉच करते समय वही शक्तियॉ प्राप्त होंगी, जो निम्नलिखित मामलों के सम्बन्ध में सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) के अधीन किसी वाद का विचारण करते समय सिविल न्यायालय में निहित होती है, अर्थात्ः
किन्हीं व्यक्तियों को समन करना और उन्हें उपस्थित कराना तथा शपथ पर मौखिक या लिखित साक्ष्य देने के लिए और दस्तावेज या चीजें पेश करने के लिए उनको विवश करना;
दस्तावेजों के प्रकटीकरण और निरीक्षण की अपेक्षा करना; (ग) शपथ-पत्र पर साक्ष्य का अभिग्रहण करना;
किसी न्यायालय या कार्यालय से किसी लोक अभिलेख या उसकी प्रतियाॅ मंगाना; (ड.) साक्षियों या दस्तावेजों की परीक्षा के लिए समन जारी करना; और (च) कोई अन्य विषय, जो विहित किया जाए।
राज्य सूचना आयोग इस अधिनियम के अधीन किसी शिकायत की जॉच करने के दौरान, ऐसे किसी अभिलेख की परीक्षा कर सकेगा, जिसे यह अधिनियम लागू होता है और जो लोक प्राधिकारी के नियंत्रण में है और उसके द्वारा ऐसे किसी अभिलेख को किन्हीं भी आधारों पर रोका नहीं जाएगा।
धारा-19 की उपधारा (1) के अधीन प्रथम अपील के विनिश्चय के विरुद्ध द्वितीय दूसरी अपील उस तारीख से जिसको विनिश्चय किया जाना था या वास्तव में प्राप्त किया गया था, नब्बे दिन के भीतर राज्य सूचना आयोग में प्राप्त की जा सकती है। परन्तु राज्य सूचना आयोग नब्बे दिन की अवधि की समाप्ति के पश्चात्, अपील को ग्रहण कर सकेगा, यदि उसका यह समाधान हो जाता है कि अपीलार्थी समय पर अपील फाइल करने में पर्याप्त कारण से निवारित हुआ था।
यदि राज्य सूचना आयोग को ऐसे विनिश्चय जिसके विरुद्ध अपील की गई है, पर व्यक्ति जीपतक चंतजल की सूचना से सम्बन्धित है तो यथास्थिति राज्य सूचना आयोग उस पर व्यक्ति को सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर देगा।
अपील सम्बन्धी किन्हीं कार्यवाहियों में यह साबित करने का भार कि अनुरोध को अस्वीकार करना न्यायोचित था, उस राज्य लोक सूचना अधिकारी पर होगा जिसने अनुरोध को अस्वीकार किया था।
राज्य सूचना आयोग का विनिश्चय पक्षों पर बाध्यकारी होगा।
अपने विनिश्चय में राज्य सूचना आयोग को निम्नलिखित की शक्ति है-
आयोग द्वारा लोक प्राधिकरण से ऐसे उपाय करने की अपेक्षा करना, जो इस अधिनियम के उपबन्धों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक हो, जिनके अन्तर्गत् निम्नलिखित भी हैं-
किसी राज्य लोक सूचना अधिकारी को नियुक्त करना;
कतिपय सूचना या सूचना के प्रवर्गों को प्रकाशित करना;
अभिलेखों के रखे जाने, प्रबन्ध और उनके विनाश से सम्बन्धित अपनी पद्धतियों में आवश्यक परिवर्तन करना;
अपने अधिकारियों के लिए सूचना के अधिकार के सम्बन्ध में प्रशिक्षण के उपबन्ध को बढ़ाना;
धारा-4 की उपधारा (1) के खण्ड (ख) के अनुसरण में अपनी एक वार्षिक रिपोर्ट उपलब्ध कराना;
लोक प्राधिकारी से शिकायतकर्ता को, उसके द्वारा सहन की गई किसी हानि या अन्य नुकसान के लिए प्रतिपूरित करना;
इस अधिनियम के अधीन उपबन्धित शास्तियों में से कोई शास्ति अधिरोपित करना;
जहॉ किसी शिकायत या अपील का विनिश्चय करते समय राज्य सूचना आयोग की यह राय है कि, राज्य लोक सूचना अधिकारी ने बिना किसी युक्तियुक्त कारण के कोई आवेदन लेने से इंकार किया है या धारा 7 की उपधारा (1) के अधीन सूचना के लिए विनिर्दिष्ट समय के भीतर सूचना नहीं दी है या असद्भावपूर्वक सूचना के लिए अनुरोध से इंकार किया है या जानबूझकर गलत, अपूर्ण या भ्रामक सूचना दी है या ऐसी सूचना नष्ट कर दी है जो अनुरोध का विषय थी या सूचना देने में किसी रीति से बाधा डाली है तो वह ऐसे प्रत्येक दिन के लिए जब तक आवेदन प्राप्त किया जाता है या सूचना दी जाती है, दो सौ पचास रुपये की शास्ति अधिरोपित करेगा, तथापि ऐसी शास्ति की कुल रकम पच्चीस हजार रुपए से अधिक नहीं होगी
परन्तु यथास्थिति राज्य लोक सूचना अधिकारी को उस पर कोई शास्ति अधिरोपित किए जाने के पूर्व सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर दिया जाएगाः परन्तु यह और कि यह साबित करने का भार कि उसने युक्तियुक्त रुप से और तत्परतापूर्वक कार्य किया है, राज्य लोक सूचना अधिकारी पर होगा।
जहॉ किसी शिकायत या अपील का विनिश्चय करते समय राज्य सूचना आयोग की यह राय है कि, राज्य लोक सूचना अधिकारी, बिना किसी युक्तियुक्त कारण के और लगातार सूचना के लिए कोई आवेदन प्राप्त करने में असफल रहा है या धारा-7 की उपधारा (1) के अधीन विनिर्दिष्ट समय के भीतर सूचना नहीं दी है या असद्भाव सूचना के लिए अनुरोध से इंकार किया है या जानबूझकर गलत, अपूर्ण या भ्रामक सूचना दी है या ऐसी सूचना नष्ट की है, जो अनुरोध का विषय थी या सूचना देने में किसी भी रीति से बाधा डाली है वहॉ, वह राज्य लोक सूचना अधिकारी के विरुद्ध उसे लागू सेवा नियमों के अधीन अनुशासनिक कार्यवाही के लिए सिफारिश करेगा।
a. राज्य सूचना आयोग प्रत्येक वर्ष के अन्त के पश्चात् यथा साध्य शीघ्रता से वर्ष के दौरान इस अधिनियम के कार्यान्वयन के सम्बन्ध में एक रिपोर्ट तैयार करेगा और उसकी एक प्रति समुचित सरकार को भेजेगा।
b. प्रत्येक विभाग, अपनी अधिकारिता के भीतर, लोक, प्राधिकरणों के सम्बन्ध में ऐसी सूचना एकत्रित करेगा और उसे राज्य सूचना आयोग को उपलब्ध कराएगा, जो इस धारा के अधीन वार्षिक रिपोर्ट तैयार करने के लिये अपेक्षित है।
c. प्रत्येक रिपोर्ट में, उस वर्ष के सम्बन्ध में कथन होगा, जिसमें रिपोर्ट निम्नलिखित से सम्बन्धित हैः-
प्रत्येक लोक प्राधिकारी को किए गए अनुरोधों की संख्या
ऐसे विनिश्चयों की संख्या, जहॉ आवेदक अनुरोधों के अनुसरण में दस्तावेजों तक पहुँच के लिए पात्र नहीं थे, इस अधिनियम के वे उपबन्ध जिनके अधीन ये विनिश्चय किए गए थे और ऐसे समयों की संख्या, जब ऐसे उपबन्धों का अवलम्ब लिया गया था,
पुनर्विलोकन के लिए यथास्थिति राज्य सूचना आयोग को निर्दिष्ट की गई अपीलों की संख्या अपीलों के स्वरुप और अपीलों के निष्कर्ष,
इस अधिनियम के प्रशासन के सम्बन्ध में किसी अधिकारी के विरुद्ध की गई अनुशासनिक कार्यवाही की विशिष्टियॉ,
इस अधिनियम के अधीन प्रत्येक लोक प्राधिकारी द्वारा एकत्रित की गई प्रभारों की रकम,
कोई ऐसे तथ्य, जो इस अधिनियम की भावना और आशय को ग्रहण कराने या कार्यान्वित करने के लिए लोक प्राधिकारियों के प्रयास को उपदर्शित करते हैं।
सुधार के लिए सिफारिशें, जिसके अन्तर्गत् इस अधिनियम या अन्य विधान या सामान्य विधि के विकास, अभिबृद्धि आधुनिकीकरण, सुधार या संशोधन के लिए विशिष्ट लोक प्राधिकारियों की बाबत सिफारिशें या सूचना तक पहुँच के अधिकार को प्रवर्तनशाील बनाने से सुसंगत कोई अन्य विषय भी हैं।
राज्य सरकार प्रत्येक वर्ष के अन्त के पश्चात् यथासाध्य, शीघ्रता से, उपधारा (1) में निर्दिष्ट यथास्थिति, राज्य सूचना आयोग की रिपोर्ट की एक प्रति जहॉ राज्य विधान मण्डल के दो सदन हैं वहॉ प्रत्येक सदन के समक्ष और जहॉ राज्य विधान मण्डल का एक सदन है वहॉ उस सदन के समक्ष रखवाएगी।
यदि राज्य आयोग को ऐसा प्रतीत होता है कि इस अधिनियम के अधीन अपने कृत्यों का प्रयोग करने के सम्बन्ध में किसी लोक प्राधिकारी की पद्धति इस अधिनियम के उपबन्धों या भावना के अनुरुप नहीं है तो वह प्राधिकारी को ऐसे उपाय विनिर्दिष्ट करते हुए सिफारिश कर सकेगी, जो उसकी राय में ऐसी अनुरुपता को बढ़ाने के लिए किए जाने चाहिए।