प्रत्येक लोक प्राधिकरण के कार्यकरण में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व के संवर्धन और एक अभिज्ञ नागरिक वर्ग के विकास के उद्देश्य से सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के मंतव्य को परिपुष्ट करना और लोक प्राधिकरणों के निपयंत्रणाधीन सूचना तक पहॅुच को सुकर बनाते हुए प्रत्येक नागरिक के सूचना के अधिकार को सुनिश्चित करना।
सूचना का अधिकार अधिनियम-2005 के अधिनियमन के साथ इस तथ्य का पूर्णतः पारिनिर्धारण हो चुका है कि सूचना का अधिकार एक मौलिक अधिकार है जो भारत का संविधान के अनुच्छेद 19(1)(क) से निस्सृत है। सूचना का अधिकार अधिनियम का अन्तिम उद्देश्य एक ऐसे अभिज्ञ नागरिक वर्ग की अपेक्षा करना है जिन्हें अपने अधिकारों की जानकारी हो और साथ में लोक प्राधिकरणों के ऐसे सुप्रशिक्षित अध्किारियों की अपेक्षा करना है जो उक्त अधिनियम के अधीन अपने कर्तव्यों एवं कृत्यों के प्रति जागरुक हों। अधिनियम के प्रभावी कार्यान्वयन के प्रति प्रतिबद्ध सरकार, गैर सरकारी संगठनों की सक्रिय सहभागिता और अन्य क्रियाकलापों और एक क्रियाशील सूचना आयोग के सहयोग से ही वॉछित परिणाम प्राप्त करने में सफल हो सकेगी। उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग, 14 सितम्बर 2005 को अस्तित्व में आया ”सूचना का अधिकार अधिनियम 2005“ में प्रतिष्ठापित उन लक्ष्यों को प्राप्त करने में अग्रणी है जिनका आशय एक अभिज्ञ नागरिक वर्ग की संरचना करना, लोक प्राधिकरणों द्वारा धारित या उनके नियंत्रणाधीन सूचना की पारदर्शिता का संवधन और भ्रष्टाचार को रोकना और सरकारों तथा उनके परिकरणों को शासित जनता के प्रति उत्तरदायी बनाना है।
सूचना का अधिकार अधिनियम के पणधारियों के प्रति हमारी मुख्य प्रतिबद्धता
सूचना का अधिकार अधिनियम के उपबन्धों को पूर्णतः प्रभावी बनाते हुए प्रत्येक नागरिक के सूचना के अधिकार को सुरक्षित रखना। आयोग के समक्ष दायर अपीलों और शिकायतों का न्यायोचित एवं समयबद्ध निस्तारण सुनिश्चित करना।
धारा-4 के अनुसार अधिक से अधिक सूचना के स्वप्रेणा प्रकटन को सुकर बनाना और लोक प्राधिकरणों द्वारा उसे नैत्यिक रुप से अद्यतन करना।
यह सुनिश्चित करना कि दैनिक कार्यकलाप और पणधारियों से पारस्परिक क्रिया न्यायोचित, युक्तियुक्त और शिष्टतापूर्वक संचालिक की जा रही है और जहॉ अपेक्षित हो, आवश्यक सहायता प्रदान की जा रही है।
यह सुनिश्चित करना कि आयोग की प्रक्रिया/कार्यप्रणाली/नियम स्पष्ट, असंदिग्ध और सहज रुप से उपलब्ध है। आयोग अधिनियम की धारा-4 के अधीन अधिक से अधिक सूचना उपलबध कराने का प्रयास करेगा।
भविष्य निरुपण को साकार करने हेतु सेवायें और लक्ष्य का विवरण
सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा-18 और 19 के अधीन दायरा की गयी अपीलों और शिकायतों का विनिश्चय यथा सम्भव शीघ्रता के साथ किया जायेगा।
यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाए जायेगें कि आयोग सहित सभी लोक प्राधिकरण विहित श्रेणी की सूचनाओं का प्रकटन स्वप्रेणा से करें। आयोग इस तथ्य की निगरानी करेगा कि क्या ऐसी सूचना को आवधिक रुप से अद्यतन किया जा रहा है।
सूचना का अधिकार अधिनियम के मंतव्य के अनुरुप कार्य करने और उसके सम्वर्धन के लिये लोक प्राधिकरणों से सिफारिश की जाएगी। इसका क्रियान्वयन आयोग द्वारा अपने विनिश्चय के रुप में, या बैठकों, गोष्ठियाँ या प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करके किया जा सकता है।
आयोग के प्रत्येक अनुभाग के भीतर दक्ष कार्य प्रणाली अपनाई जाएगी। इसके अन्तर्गत् अन्य बातों के साथ, सुसंगत अभिलेखों की नियमित प्रविष्टि और उनका अद्यतनीकरण, पत्रावलियों/पत्रव्यवहार का त्वरित संचालन, पत्रावलियों/दस्तावेजों का समुचित रख-रखाव आयोग द्वारा प्राप्त पत्रादि का युक्तियुक्त समय के भीतर उत्तर देना भी है।
आयोग में कार्यरत अधिकारियेां, कर्मचारिवृन्द और अन्य व्यक्तियों को आवश्यक कौशल और प्रशिक्षण प्रदान करने का प्रयास किया जाएगा ताकि सम्पादित कार्य उच्च गुणवत्ता और मानक के अनुरुप हो।
उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग का गठन कैसे किया जाता है?
उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग का गठन अधिनियम की धारा-15 के उपबन्धों के अनुसार राज्य सरकार द्वारा गजट अधिसूचना संख्या-856/43-2-2005-15-2-2003-टी-सी-4, दिनॉक 14 सितम्बर 2005 के माध्यम से किया गया है।
आयोग एक राज्य मुख्य सूचना आयुक्त (एस0सी0आई0सी0) और दस से अनधिक राज्य सूचना आयुक्तों (एस0आई0सी0एस0), जिनकी नियुक्ति महा महिम राज्यपाल द्वारा उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री की अध्यक्षता में एक चयन समिति की सिफारिश पर की जाती है, से मिलकर बना है।
राज्य मुख्य सूचना आयुक्त और राज्य सूचना आयुक्तों के पद की शपथ उत्तर प्रदेश के राज्यपाल द्वारा अधिनियम की प्रथम अनुसूची में उक्त प्रयोजन के लिए दिए गए प्रारुप के अनुसार दिलाई जाती है।
आयोग का मुख्यालय लखनऊ में है।
राज्य मुख्य सूचना आयुक्त/राज्य सूचना आयुक्तों की पात्रता का मापदण्ड क्या है और उनकी नियुक्ति की प्रक्रिया क्या है?
राज्य मुख्य सूचना आयुक्त और राज्य सूचना आयुक्त विधि, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, समाजसेवा,प्रबन्धन, पत्रकारिता, जनमाध्यम या प्रशासन और शासन में व्यापक ज्ञान और अनुभव वाले सामाजिक जीवन के अनिवार्यतः प्रख्यात व्यक्ति होगें {धारा 15(5)}
राज्य मुख्य सूचना आयुक्त या राज्य सूचना आयुक्त संसद का सदस्य या किसी राज्य या संघ राज्य क्षेत्र के विधान मण्डल का सदस्य नहीं होगा या कोई अन्य लाभ वाला पद धारण नहीं करेगा या किसी राजनीतिक दल से सम्बद्ध नहीं होगा या कोई कारबार नहीं करेगा या कोई वृत्ति नहीं करेगा। {धारा 15(6)}
राज्य मुख्य सूचना आयुक्त या राज्य सूचना आयुक्त के पद पर नियुक्ति राज्यपाल द्वारा एक ऐसी चयन समिति की सिफारिश पर की जाएगी जिसके गठन में मुख्यमंत्री जो समिति का अध्यक्ष होगा, विधान सभा में विपक्ष के नेता और मुख्य मंत्री द्वारा नामनिर्दिष्ट एक मंत्रिमण्डलीय मंत्री समाविष्ट होगें। {धारा 15(3)}
राज्य मुख्य सूचना आयुक्त के वेतन और भत्ते तथा उसकी सेवा की अन्य निबन्धन और शर्तें क्या हैं?
राज्य मुख्य सूचना आयुक्त उस तारीख से जिसको वह अपना पद ग्रहण करता है, पाॅच वर्ष की अवधि के लिए या 65 वर्ष की आयु प्राप्त करने तक, इनमें से जो पूर्वतर हो, पद धारित करता है। {धारा 16(1)}
राज्य मुख्य सूचना आयुक्त पुनर्नियुक्ति के लिए पात्र नहीं है {धारा 16(6)}
राज्य मुख्य सूचना आयुक्त को संदेय वेतन और भत्ते तथा उसकी सेवा की अन्य निबन्धन वऔर शर्तें तथा उसकी सेवा की अन्य निबन्धन और शर्तें वही हैं जो भारत के निर्वाचन आयुक्त की हैं और उनमें उसके लिए अलाभकारी रुप में परिवर्तन नहीं किया जायेगा।
राज्य सूचना आयोग के कर्तव्य, शक्तियाँ और कृत्य कौन कौन से हैं?
राज्य सूचना आयोग का अधिनियम की धारा-18 के अधीन, यह कर्तव्य है कि निम्नलिखित किसी ऐसे व्यक्ति से शिकायत प्राप्त करे और उसकी जॉच करेः-
जो लोक सूचना अधिकारी के समक्ष सूचना हेतु अनुरोध प्रस्तुत करने में इस कारण से असमर्थ रहा है कि लोक सूचना अधिकारी की नियुक्ति नहीं की गयी है या लोक सूचना अधिकारी ने उसके आवेदन को स्वीकार करने से इंकार कर दिया है; या
जिसे अनुरोध की गयी जानकारी देने से इंकार कर दिया गया है; या
जिससे ऐसी फीस की रकम का संदाय करने की अपेक्षा की गयी है जो वह अनुचित समझता है; या व जो यह विश्वास करता है कि उसे दी गयी सूचना अपूर्ण या मिथ्या या भ्रामक है।
आयोग को अधिनियम की धारा-18 के अधीन किसी मामले में जॉच करते समय वही शक्तियाँ प्राप्त होंगी, जो निम्नलिखित मामलों के सम्बन्ध में सिविल न्यायालय में निहित होती हैं;
किन्हीं व्यक्तियों को समन करना और उन्हें उपस्थित कराना तथा शपथ पर मौखिक या लिखित साक्ष्य देने के लिए और दस्तावेज या चीज़े पेश करने के लिए उनको विवश करना;
दस्तावेजो के प्रकटीकरण और निरीक्षण की अपेक्षा करना;
किसी न्यायालय या कार्यालय से किसी लोक अभिलेख या उसकी प्रतियाँ मंगाना;
साक्षियों या दस्तावेजों की परीक्षा के लिए समन जारी करना; और
कोई अन्य विषय जो विहित किया जाय।
आयोग सूचना हेतु किसी अनुरोध पर या अधिनियम की धारा 19(1) के अधीन प्रथम अपील प्राधिकारी के समक्ष दायर प्रथम अपील पर लोक सूचना अधिकारी के विनिश्चय के विरुद्ध अधिनियम की धारा 19(3) के अधीन दायर द्वितीय अपील को ग्रहण कर सकता है और ऐसे ग्रहण के पश्चात् विहित प्रक्रिया के अनुसार अपील की सुनवाई कर सकता है और उस पर ऐसा आदेश पारित कर सकता है जैसा न्याय संगत और उपयुक्त समझा जाय। ऐसी अपील पर आयोग का विनिश्चय आबद्धकर होगा।
अधिनियम की धारा 19(3) के अधीन किसी अपील का विनिश्चय करते समय आयोग को निम्नलिखित शक्तियाँ हैं;
लोक प्राधिकरण से ऐसे उपाय करने की उपेक्षा करना जिनके अन्तर्गत् निम्नलिखित भी हैं;
विशिष्ट प्रारुप में सूचना तक पहुचॅ उपलब्ध कराना;
जहाँ कोई लोक सूचना अधिकारी विद्यमान न हो, वहाँ लोक प्राधिकरण को लोक सूचना अधिकारी नियुक्त करने के लिए निर्देशित करना;
सूचना या सूचना के प्रवर्गों को प्रकाशित करना;
अभिलेखों के रख-रखाव, प्रबन्धन और उनके विनाश से सम्बन्धित अपनी पद्धतियों में आवश्यक परिवर्तन करना;
अभिलेखों के रख-रखाव, प्रबन्धन और उनके विनाश से सम्बन्धित अपनी पद्धतियों में आवश्यक परिवर्तन करना;
सूचना के अधिकार के पदाधिकारियों के लिए प्रशिक्षण सम्बन्धी उपबन्ध को बढ़ाना;
अधिनियम की धारा 4(1)(ख) के अनुपालन में लोक प्राधिकरणों से वार्षिक रिपोर्ट माँगना।
लोक प्राधिकरण से शिकायतकर्ता को उसके द्वारा सहन की गई किसी हानि या अन्य नुकसान के लिए प्रतिपूरित करने की अपेक्षा करना;
अधिनियम की धारा-20 के अधीन शास्तियाँ अधिरोपित करना;
आवेदन को नामंजूर करना।
आयोग किसी शिकायत या अपील का विनिश्चय करते समय लोक सूचना अधिकारी पर शास्ति अधिरोपित कर सकता है, यदि उसकी यह राय हो कि लोक सूचना अधिकारी ने बिना किसी युक्तियुक्त कारण केः-
सूचना हेतु कोई आवेदन लेने से इंकार किया है; या
विनिर्दिष्ट समय के भीतर सूचना नहीं दी है; या
असद्भावपूर्वक सूचना के लिए अनुरोध को इंकार किया है; या
जानबूझकर गलत, अपूर्ण या भ्रामक सूचना दी है; या
ऐसी सूचना नष्ट कर दी है जो अनुरोध का विषय थी; या
सूचना देने में किसी रीति से बाधा डाली है।
इस प्रकार अधिरोपित शास्ति जब तक आवेदन प्राप्त किया जाता है या सूचना दी जाती है, रुपये 250/-प्रतिदिन है जो रुपये 25,000/- की अधिकतम सीमा के अधीन होगी।
आयोग लोक सूचना अधिकारी को उस पर कोई शास्ति अधिरोपित किये जाने के पूर्व सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर प्रदान करेगा।
आयोग किसी शिकायत या अपील का विनिश्चय करते समय लोक सूचना अधिकारी के विरुद्ध उसे लागू सेवा नियमों के अधीन अनुशासनिक कार्यवाई के लिए सिफारिश भी कर सकता है।